लखनऊ, 11 जनवरी (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के क्षेत्रीय बौद्धिक प्रमुख मिथिलेश नारायण ने कहा कि धर्म की रक्षा करना सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। भारत में चार प्रकार के लक्ष्य को पाना बताया गया है, जिसमें धर्म सबसे पहले आता है। धर्म की रक्षा करने वाले धर्म रक्षक स्वामी विवेकानन्द ने विश्व को पुरुषार्थ का परिचय दिया।
लखनऊ विश्वविद्यालय में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती की पूर्व संध्या पर भू विज्ञान विभाग के सभागार में आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता मिथिलेश नारायण ने कहा कि भारत के बाहर दो लक्ष्य को प्राप्त करना ही श्रेष्ठ माना जाता है। यह दो लक्ष्य माने जाते हैं, अर्थ और काम। भारत में यह चार प्रकार का है, जिसे हम सुनने और समझते आये हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जो चार प्रकार है, इसमें सबसे पहले धर्म की बात होती है।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने देश के बाहर धर्म सभा में विश्व पटल पर भारतीय धर्म संस्कृति की बात की। धर्म को प्राथमिक बताया। जब वह देश वापस लौटे तो लोगों ने उनको जमीन पर शरीर रगड़ते हुए देखा। लोगों ने माना कि शिकागो गये स्वामी जी बदल गये हैं या उनके मस्तिष्क पर कोई असर हो गया है। जब स्वामी विवेकानन्द ने जमीन पर अपना शरीर रगड़ने के बाद लोगों से कहा कि अब जाकर बाहर की संस्कृति की धूल मैंने अपने शरीर पर से हटा ली। अपने देश की मिट्टी लगाकर संतुष्ट महसूस कर रहा हूं। उन्होंने धर्म का वह रुप दिखाया जो आज के युवाओं को अपनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने अंग्रेजी सीखने को कहा था, ना कि अपनाने को। लोगों ने अंग्रेजी सिखने के बाद अंग्रेजी अपनाना शुरु कर दिया। अंग्रेजी गाने, पहनावा और दिवस मनाने लगे। देश में वैलेनटाइन आ गया और लोग बर्थडे मनाने लगें। बर्थडे में भी अब बच्चों को काटना सिखाया जा रहा है और बच्चे चाकू लेकर काटना सीख रहे हैं। जबकि हमारे देश में जन्मदिन के दिन जोड़ने की संस्कृति थी।
उन्होंने कहा कि आज संत का जो स्वरुप है, उसे बिगाड़ कर दिखाया जाता है। संत का वास्तविक स्वरुप अगर था, तो उसे स्वामी विवेकानन्द ने धारण किया था। आज संत को असाधु के रुप में दिखाना और उसे देखना ज्यादा प्रचलित हो गया है। लेकिन बिगड़े स्वरुप के स्थान पर संत के वास्तविक स्वरुप का अध्ययन करना जरुरी है।
इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नगर संघचालक एसएन झा, उत्तर भाग के सह कार्यवाह अभिषेक मोहन, नगर कार्यवाह अखंड और लखनऊ विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के प्रोफेसर व रीडर मौजूद रहें।