रलखनऊ, 18 अगस्त (हि.स.)। जिस तरह पृथ्वी, जल व अग्नि हैं, जीवन के तीन चक्र हैं, वैसे ही संगीत की तीन विधाओं के अनोखे समागम ‘त्रयी’ को शनिवार देर सायं एक मंच पर प्रस्तुति देख श्रोता झूम उठे। संगीत के इस अंदाज से लखनऊवासी पहली बार रूबरू हुये।
‘सोन चिरैया और पंजाब नेशनल बैंक की ओर से ‘त्रयी’ नाम से संगीत की महफिल संत गाडगे प्रेक्षागृह में सजी। ठुमरी, लोक तथा फ्यूजन(आधुनिक संगीत) की सम्मिश्रण से सुरमयी ‘त्रयी’ की रसधार सुन श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।
‘त्रयी’ की शुरूआत पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने शास्त्रीय संगीत ठुमरी से कीं। सैंया बुलावे आधी रात नदिया बैरन भई… गुजर गई रतिया, सईंया न आवें…, मैंने लाखों के बोल सहे… और पंजाबी का टप्पा ‘टप-टप रसै रे, प्रेम की बूंद.. ने कानों में संंगीत का रस घोल दिया। इस दौरान हरमोनियम पर धर्मनाथ मिश्र, सारंगी पर मुराद अली और तबला पर पं.रामकुमार मिश्र की थाप ने सबका मनमोह लिया।
त्रयी के दूसरे चरण की शुरूआत मालिनी ने लोक संगीत से कीं। कहा कि जीवन में लोक परम्परा, लोक कला और लोक जीवन का बड़ा महत्व है। खुशी और विरह को समेटे इस संगीत में आज भी जीवंतता है। ‘गोदना गोदे गोदनहारी रे, माथे पर लिख दे, राम लला के…, ‘अरि अम्मा मेरो बाबा को भेजो री कि सावन आयो रे…’ कवन रंग मूंगवा कवन रंग मोतिया, अरे कवन रंग ननदी तोरे बिन नाहीं, लाल रंग मूंगवा सफेद रंग मोतिया, सांवर रंग भऊजी…’,पिया मेहंदी लिया दा मोती झील से, जायके साईकिल से न…’ रैलिया बैरन पिया को लिए जाये रे…’ अरे पूरब के पनीया, खराब रे विदेशिया…’ तुमको आने में हमको बुलाने में…’ जौने टिकतवा से सईंया मोरे जईहन…’कजरी व लोकगीतों ने दर्शकों को लोक परम्परा के रस में डुबो दिया।
उमंग ऐसा था कि मालिनी अवस्थी के ‘रैलिया बैरन पिया को लिए जाये रे…’गीत शुरू होते ही दर्शक दीर्घा में बैठी महिलाएं मंच पर आकर थिरकने लगीं। कार्यक्रम के बीच में प्रमुख सचिव गृह व सूचना अवनीश अवस्थी के पहुंचते ही मालिनी अवस्थी ने उनके लिए ‘पिया तुमको आने में और हमको बुलाने में…की सुर ने प्रेम की सागर में सभी श्रोताओं को डुबो दिया। इस गाने पर पूरा सभागार तालियों की गूंज से कई मिनट तक गूंजता रहा। वहीं उनकी गायिकी से कायल होकर अवनीश अवस्थी ने मालिनी से हाथ मिलाकर बधाई दी।
अंतिम प्रस्तुति में मालिनी का वेश भूषा के साथ वाद्य, नृत्य और गीत तीनों नये रूप में सामने आया। इस ‘त्रयी’ में मालिनी अवस्थी ने शास्त्रीय, लोकसंगीत और आधुनिक संगीत को सम्मिश्रण कर प्रस्तुत की। उनकी इस प्रस्तुति ने श्रोताओं को सभागार में खड़े होने का विवश किया और सभी ने तालियां बजाकर उनके कला को नमन व अभिवादन किया। इस दौरान ‘अबके सावन घर आजा…’ हमारी अटरिया पे…’ तोसे नैना मिलाइकै…’ हाय मैं क्या करूं…’, चौदहवीं की चांद हो…’ जो भी हुआ खुदा की कसम…’ ये दिल और उनकी निगाहों के साये…’ इन आंखों की मस्ती के…’ सईंया मिले लरकईयां मैं क्या करूं…’ ये मौसम है आशिकाना…’ समेत अन्य गीतों के साथ पद्मश्री मालिनी अवस्थी की प्रस्तुति ने अवध की शाम को खुशनुमा बना दिया।
‘त्रयी’ के तीनों चरणें में मंच पर बना सेट भी बदलता रहा। जहां पहले शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति में मंच परम्परागत नजर आया तो वहीं लोक गायन के दौरान मंच को ग्रामीण परिवेश में रंग दिया गया। तीसरे खंड में मंच आधुनिकता के साथ सूफी रंग में रंगा नजर आया। संगीत के साथ मंच की सुन्दरता ने दर्शकों को अंत तक बांधे रखा।
इस मौके पर मालिनी ने कहा कि हमारी पहचान लखनऊ से है। यहां से नाम जुड़ते ही ओहदा बढ़ जाता है। मंच के आखिरी प्रस्तुति के दौरान कहा कि ये फ्यूजन अवतार जो सामने आया है ये उनके पति अवनीश अवस्थी की देन है। वे इस कलेवर को देखने के बाद एक बार बोले की इसे भी गाना चाहिए। यहां आज जो प्रस्तुति कर रही हूं, इसका पूरा श्रेय अवनीश का है। इस मौके पर निदेशक सूचना-संस्कृति शिशिर कुमार, गायिका प्रो. कमला श्रीवास्तव समेत लखनऊ के संगीतप्रेमी और प्रबुद्धवर्ग के लोग मौजूद रहे।