बद्रीनाथ वर्मा
भारत के महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन चंद्रयान-2 मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग होने के साथ ही विक्रम लैंडर चांद से मिलने के लिए रवाना हो गया। इसरो ने भी ट्वीट कर इसकी पुष्टि की है। 22 जुलाई को लॉन्चिंग के 41वें दिन सोमवार 2 सितम्बर को भारतीय समयानुसार लैंडर विक्रम दिन में करीब 1 बजकर 35 मिनट पर सफलतापूर्वक चंद्रयान-2 मॉड्यूल से अलग हो गया। इस सफलता के साथ तय हो गया कि चांद अब हमसे ज्यादा दूर नहीं है। बल्कि यूं कहें कि यह हमारी मुट्ठी की जद में है, तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। खैर, लैंडर के अलग होने के साथ ही यह भी साफ हो गया कि विक्रम अपने निश्चित समय यानी 7 सितम्बर को ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। यह 2 मिनट प्रति सेकंड की गति से चंद्रमा की जमीन पर उतरेगा। लैंडिंग के 4 घंटे बाद रोवर प्रज्ञान बाहर आएगा और 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा। प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर 14 दिनों में कुल 500 मीटर की दूरी तय करेगा। विक्रम के चांद को छूने के साथ ही एक महत्वपूर्ण जानकारी यह भी मिलेगी कि चंद्रमा से पृथ्वी की वास्तविक दूरी है कितनी। पृथ्वी और चांद की वास्तविक दूरी दरअसल वैज्ञानिकों के लिए भी अभी तक अबूझ पहेली बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चंद्रयान-2 के साथ अपना एक लूनर लेजर रेट्रो रिफ्लेक्टर भेजा है जो वैज्ञानिकों को चंद्रमा की पृथ्वी से असली दूरी बताएगा। रेट्रो रिफ्लेक्टर एक तरह के परिष्कृत शीशे होते हैं जो पृथ्वी से भेजी गई लेजर लाइट के सिग्नल को वापस भेजते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर लेजर लाइट्स के वापस आने पर लैंडर के वास्तविक स्थान का पता चल जाएगा। इससे पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की वास्तविक दूरी का सटीक आकलन किया जा सकेगा। वैसे इस तरह के 5 उपकरण चंद्रमा की सतह पर पहले से मौजूद हैं, लेकिन वह सही से काम नहीं कर पा रहे हैं। यही कारण है कि अब तक चांद की वास्तविक दूरी का पता नहीं चल पाया है।
वैसे चांद सदियों से कहानियों, मिथक और कविताओं के माध्यम से हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। चाहे प्रेयसी की खूबसूरती का वर्णन हो या फिर कृष्ण का ‘चंद्र खिलौना लैहो …’ वाला बाल हठ। हर कहीं चंद्रमा अपने पूरे रौ में मौजूद है। हालांकि खगोल वैज्ञानिकों की नजर में चंद्रमा धरती का एक ऐसा उपग्रह है, जहां जीवन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इतिहास और भविष्य की तलाश में अब चांद अंतरिक्ष यात्रा एवं खोज के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव हो गया है। चांद को लेकर इंसान की दिलचस्पी इसलिए और अधिक बढ़ गई है क्योंकि एक प्रस्तावित योजना के अनुसार साल 2022 तक चंद्रमा पर कॉलोनी बनाकर शुरुआत में 10 लोगों को बसाने की योजना है। इसे पूरा करने में अरबों डॉलर का खर्च आने की संभावना है। भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-1 के जरिए साबित कर दिया है कि चांद पर बर्फ के रूप में पानी मौजूद है। चांद को लेकर भारत की इस खोज को अमेरिकी एजेंसी नासा ने भी स्वीकार किया है। अब चंद्रयान-2 नई खोज करने के लिए चांद के उस भाग में जा रहा है, जहां से पूरी दुनिया अभी अनजान है।
उल्लेखनीय है कि चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग पहले 15 जुलाई को ही होने वाली थी। सारी तैयारियां पूरी की जा चुकी थीं। दर्शक दीर्घा खचाखच भरा था। प्रक्षेपण के इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए खुद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी वीआईपी गैलरी में मौजूद थे। घड़ी की सूइयां टिक-टिक कर प्रक्षेपण के पल को पल-पल सन्निकट ला रही थीं। वहां मौजूद वैज्ञानिकों, दर्शकों व मीडियाकर्मियों की धड़कनें तेज होती जा रही थीं। तभी, एक ऐसी बुरी खबर आई जिसने सभी को एक साथ मायूस कर दिया। यह बुरी खबर थी, प्रक्षेपण से महज 56 मिनट 24 सेकेंड पहले तकनीकी खामी की वजह से चंद्रयान 2 की उड़ान रोक दिये जाने की। इस खबर ने वहां मौजूद लोगों की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया। तकनीकी खामी के कारण चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण रुक जाने के बाद लगा कि वाकई फिलहाल चांद दूर ही है। परंतु, वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 में आई खामी को दूर कर 22 जुलाई को इसकी सफलतापूर्वक लॉन्चिंग कर पूरे देश को गौरवान्वित कर दिया। चंद्रयान-2 मिशन अब तक के मिशनों से भिन्न है। करीब दस वर्ष के वैज्ञानिक अनुसंधान और अभियान्त्रिकी विकास के कामयाब दौर का यह सुफल है।
भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण इस मिशन के सफल होते ही चंद्रमा पर अपना यान उतारने वाला हमारा देश दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन ही चंद्रमा पर अपना यान उतारने में सफल रहे हैं। हालांकि मिशन की सफलता के साथ भारत इन देशों से भी दो कदम आगे बढ़ जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जा रहा है, जहां अभी तक कोई नहीं पहुंचा है। चांद के इस भाग में सूर्य की किरणें सीधी नहीं पड़ने के कारण यह भाग अत्यधिक ठंडा रहता है।
इस मिशन से व्यापक भौगौलिक, मौसम सम्बन्धी अध्ययन और चंद्रयान-1 द्वारा खोजे गए खनिजों का विश्लेषण करके चंद्रमा के अस्तित्व में आने और उसके क्रमिक विकास की और ज़्यादा जानकारी मिल पायेगी। चंद्रयान-2 के चंद्रमा पर रहने के दौरान इसरो के वैज्ञानिक चांद की सतह पर अनेक और परीक्षण भी करेंगे। इनमें चांद पर पानी होने की पुष्टि और वहां अनूठी रसायनिक संरचना वाली नई किस्म की चट्टानों का विश्लेषण शामिल हैं।
(लेखक हिंदुस्थान समाचार की साप्ताहिक पत्रिका ‘युगवार्ता’ के सहायक संपादक हैं।)